भारत में जाति प्रथा सदियों से चली आ रही है. अब हाल के वर्षों में पिछड़े जाति और अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों में इस बात को लेकर काफी उत्सुकता कि उनके जातियों की कुल आबाद कितनी है. कई राज्यों में ऐसा पाया गया है कि सरकारी संसाधन का ऊँचे तबकों वाले जातियों को मिल रहा है. इसलिए कई राज्यों ने अपने राज्य में जाति आधारित जनगणना करवाने की मुहीम चलाई है.
बिहार इस मामले में सबसे आगे रहा है. बिहार में नितीश कुमार वर्ष 2023 में जातीय सर्वे करवाया. और इसका प्रकाशन 2 अक्टूबर 2023 को करवाया. इस तरह से बिहार जातीय जनगणना करवाने और उसके आंकड़े को सार्वजनिक करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है. इसके बाद से कई अन्य राज्यों में भी जातीय जनगणना की मांग बढ़ गई है.
फ़रवरी 2024 में झारखंड में चम्पई सोरेन सरकार ने झारखंड राज्य में जातीय जनगणना करवाने का आदेश पारित किया.
बिहार के बाद उड़ीसा राज्य में भी जातीय जनगणना का कार्य संपन्न किया गया. हालांकि उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है.
सात अक्टूबर 2023 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी राजस्थान में जाति आधारित सर्वे करवाने का एलान किया था.
नवम्बर 2023 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वायदा किया था कि विधान सभा चुनाव जीतने पर मध्य प्रदेश में भी जातीय जनगणना का काम होगा.
छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस सरकार ने एलान किया था कि नवम्बर 2023 विधानसभा चुनाव के बाद छतीसगढ़ राज्य में जातीय जनगणना करवाई जाएगी.
कर्नाटक राज्य में फरवरी 2024 को जातीय जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित की गई.
तमिलनाडु में DMK की सरकार ने भी जातीय जनगणना करने पर सहमत है. वहां भी किसी भी दिन इसकी घोषणा हो सकती है.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने जातीय जनगणना करवाने की मांग की है.
कर्नाटक राज्य में कांग्रेस सरकार ने जातीय जनगणना करवाने की बात तो नहीं कही है लेकिन वहां के स्थानीय निकायों के चुनाव में ओबीसी के लिए 33% आरक्षण देने का एलान 5 अक्टूबर 2023 को किया है.
कांग्रेस पार्टी ने तो वायदा किया है कि वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद यदि केंद्र में INDIA की सरकार बनती है तो पुरे देश में होने वाले जनगणना में जाति को भी अंकित किया जायेगा ताकि पुरे देश भर में किस जाति की कितनी संख्या है, उसका पूरा ब्यौरा मिल सके.
अब तक भाजपा शासित किसी भी राज्य ने जातीय जनगणना करने की बात नहीं कही है. कांग्रेस व सहयोगी दलों का कहना है कि भाजपा जातीय जनगणना करवाने के पक्षधर नहीं है. भाजपा मूलरूप से अगड़ी जातियों वाली पार्टी है. वह नहीं चाहती है कि ओबीसी और दलित वर्ग अपनी वास्तविक संख्या को जाने. क्यों कि अगर पिछड़ी व दलित जाति के लोग अपनी असली आबादी के बारे में जान जायेंगे तो फिर अपनी जातियों के लोगों को सत्ता में बिठाने की बात करेंगे ताकि इन वर्गों का अधिक से अधिक भला हो सके. ऐसी स्थिति में सत्ता और सरकारी नौकरियों में अगड़ी जातियों का प्रभुत्व कम हो जायेगा. भाजपा और संघ ऐसा होने नहीं देना चाहते हैं. इसलिए वो लोग खुल कर जातीय जनगणना को एक बुराई के रूप में बताते हैं. और ऐसी कोशिश में है कि ओबीसी को मिले 27% आरक्षण में ही घालमेल कर के ओबीसी को ही आपस में लडवा दें. हालांकि अब ओबीसी समाज की मांग है कि पिछड़े समाज की जितनी आबादी है उसी अनुपात में उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाय. भाजपा ओबीसी को आरक्षण देने के पक्षधर में नहीं है. भाजपा अगड़ों को आरक्षण दे सकती है मगर ओबीसी को आरक्षण देने के खिलाफ है.
हालांकि ओबीसी समाज की बढती हुई आबादी को देख कर उनकी मांग को दबाने या नजरंदाज करने की कोशिश में भाजपा को सत्ता खोना पड़ सकता है. इसलिए काफी उम्मीद है कि भाजपा भी जातीय जनगणना करवाने का एलान जल्द ही कर सकती है. भाजपा के कई सहयोगी दल जैसे कि अपना दल, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा आदि ने में भारत में जातीय जनगणना करवाने की मांग किया है.